कुशलगढ़ में जनजाति महासम्मेलन सम्पन्न, आदिवासी समाज ने भरीं हुंकार, अब धर्म परिवर्तन करने वाले होंगे समाज से बाहर
कुशलगढ़ | रविवार को जनजाति सुरक्षा मंच का ज़िला सम्मेलन आयोजित किया गया | जिसमें मुख्य वक्ता बंशीलाल कटारा रहे | मुख्य अतिथि डॉक्टर नारायण निनामा , संत सानिध्य नरसिहगिरि महाराज, सुरक्षा मंच के ज़िला संयोजक बहादूर डामोर, डॉक्टर वजहिग मईडा उपस्थित रहे | मुख्य वक्ता ने कहा की जनजाति समाज अनादि काल से धर्म की रक्षा करता आया है ओर हम भी धाम धूनी धर्म की ध्वजा को हमेशा आबाद ओर सुरक्षित रखेंगे | यह आंदोलन सड़क से संसद ओर सरपंच से सांसद तक का अभियान है जिसने आम जनजाति के सवेधानिक अधिकारो के लिए पूरे ज़िले के जनजाति युवा, भक्त, मेट, कोतवाल, सामाजिक कार्यकर्ता इस प्रोग्राम में पारम्परिक वेशभूषा में पारम्परिक वाधयंत्रो के साथ इस जनजाति ज़िला महासम्मेलन में भाग लिया | कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए मुख्य वक्ता ने कहा की आदिवासी ही इस देश की संस्कृति ओर सभ्यता के सेवक है |
बंशीलाल कटारा ने बताया कि रविवार को जनजाति सुरक्षा मंच द्वारा बताया कि भारत का संविधान न्याय और कल्याण के लिए कई प्रावधान करता है। इस क्रम में संविधान के अनुच्छेद 341 और 342 में क्रमश: अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए की अखिल भारतीय एवं राज्यवार, आरक्षण एवं संरक्षण के लिए महामहिम राष्ट्रपति महोदय सूची जारी करने का प्रावधान हैं। ऐसी सूचियां सन 1950 में जारी हुई है। ये सूची जारी होने के आधार पर ही संविधान के उद्देश्य के लिए SC/ST वर्गों के लिए हितकारी प्रावधान, सरकारों द्वारा लागू किए जाते हैं।
एक ओर जहां, अनुसूचित जाति हेतु महामहिम राष्ट्रपति ने जब सूची जारी की तब, धर्मांतरित ईसाई एवं मुसलमान को SC में सम्मिलित नहीं किया गया। वहीं दूसरी ओर, अनुसूचित जनजातियों की सूची में उक्त दोनों धर्मांतरिततों के लोग बाहर नहीं करके, ST में सम्मिलित रखे गए। मूल रूप से यह एक भारी विसंगति है, एवं संविधान के कल्याणकारी/ न्यायकारी उद्देश्य के विपरीत होकर, मूलत संकृति वाली बहुसंख्यक ST के लिए यह उचित नहीं है। यहां यह जान लेना जरूरी है कि धर्मांतरण के उपरांत आदिवासी सदस्य , indian Christian कहलाते है जो कि कानूनन अल्पसंख्यक की श्रेणी में आते है। इस प्रकार धर्मांतरित ईसाई और मुस्लिम दोहरी सुविधाओं को ले रहे है।
इस संबंध में सन 1968 में डॉ. कार्तिक उरांव, पूर्व सांसद ने, इस संवैधानिक/ कानूनी विसंगति को दूर करने के प्रयास किए एवं विस्तृत अध्ययन भी किया। जनजाति नेता डॉ. कार्तिक उरांव ने 1968 में किए अपने अध्ययन में पाया कि 5% धर्मांतरित ईसाई, अखिल भारतीय स्तर पर कुल ST की 62% से अधिक नौकरियां, छात्रवृत्तियां एवं शासकीय अनुदान ले रहे, साथ ही प्रति व्यक्ति अनुदान आवंटन का अंतर उल्लेखनीय रूप से गैर-अनुपातिक था। इस प्रकार की मूलभूत विसंगति को दूर करने के लिए संसद की संयुक्त संसदीय समिति का गठन हुआ जिसने अनुशंसा की कि अनुच्छेद 342 से धर्मांतरित लोगों को ST की सूची से बाहर करने के लिए राष्ट्रपति के 1950 वाले आदेश मे संसदीय कानून द्वारा संशोधन किया जाना जरूर है। इस मसौदे पर तत्कालीन 348 सांसदगण का समर्थन भी प्राप्त हुआ था।
यह उल्लेखनीय है कि ST की पात्रता के लिए विशिष्ट प्रकार की संस्कृति जरूरी है। यहां विशिष्ट प्रकार की संस्कृति का आशय पूजा पद्धति से ही संस्कृति है। यह भारतीय मत है एवं भारतीय आदि विश्वास, आदि संस्कृति व आदिवासी संस्कृति का सार है। इसी आधार पर भी संशोधन का दावा रहा है, परंतु सन 1970 के दशक इस हेतु विचाराधीन मसौदे पर कानून बनने से पूर्व ही लोकसभा भंग हो गई। यह एक दुःखद अध्याय है। सन 2000 की जनगणना और 2009 की डॉ जे के बजाज का अध्ययन भी इस गैर-आनुपातिक और दोहरा लाभ हड़पने की समस्या विकरालता को उजागर करते है कि धर्मांतरित ईसाई एवं मुसलमान अनुसूचित जनजातियों के अधिकांश सुविधाओं को हड़प रहे है
इस क्रम में सन 2006 में जनजाति सुरक्षा मंच का गठन किया गया और धर्मांतरित ईसाई एवं मुसलमान को अनुसूचित जनजाति की सूची से हटाने के एक सूत्री बात को आगे बढ़ाया गया। इन प्रयासों के तहत सन 2009 में महामहिम राष्ट्रपति महोदय को 28 लाख हस्ताक्षर युक्त ज्ञापन दिया और महामहिम राष्ट्रपति महोदय से सुरक्षा मंच द्वारा इस हेतु आग्रह-निवेदन भी किया गया। सन 2020 में डॉ कार्तिक उरांव के जन्मदिवस, 29 अक्टूबर के अवसर पर व्यापक जनसंपर्क अभियान किया गया, जिसमें 288 जिलों में जिला कलेक्टर/संभागीय आयुक्त के माध्यम से, 14 विभिन्न राज्यों के राज्यपाल व 7 राज्यों के मुख्यमंत्रियों से मिलकर, महामहिम राष्ट्रपति महोदय को ज्ञापन द्वारा निवेदन किया गया। सन 2021 में डॉ कार्तिक उरांव के जन्मदिवस, 29 अक्टूबर के अवसर पर इस बारे में विस्तृत चर्चा की
अब तक के प्रयासों पर विस्तृत चर्चा एवं मंथन के उपरांत, एक महाअभियान शुरू किया है, जो सड़क से संसद तक और सरपंच से सांसद तक संपर्क हेतु चल रहा है | पूरे देश की सभी जनजातियां एवं अखिल समाज इस बात को लेकर चिंतित जान पड़ा है, और जनजाति सुरक्षा मंच ने उक्त विसंगति को सभी के समक्ष रखा है। इस क्रम में ग्राम संपर्क कर, देशभर में जिला सम्मेलनो का भी आयोजन किया जा रहा है। विगत दिनों दिल्ली में जनजाति सुरक्षा मंच के कार्यकर्ताओं ने सांसद संपर्क महाअभियान किया है, जिसमें 442 सांसदों से संपर्क कर De-listing का कानून बनाने का आग्रह किया है। राजस्थान के 37 सांसद सम्मिलित है जिसमें 36 सांसदगण से संवाद हो गया है।
इस 1 सूत्रीय कार्यक्रम को लेकर जनजाति सुरक्षा मंच, सड़क से संसद तक एवं सरपंच से सांसद तक आंदोलन, संघर्ष एवं संपर्क का अभियान चला रहा है। इस एक सूत्रीय अभियान को लेकर जनजाति सुरक्षा मंच तब तक संघर्ष करेगा, जब तक धर्मांतरित ईसाई और मुसलमानों को ST की पात्रता और परिभाषा से बाहर नहीं निकाला जाता, और इस हेतु संसद द्वारा 1970 से लंबित कानून नहीं बना दिया जाता। इस क्रम में राजस्थान में 5500 जनजाति ग्रामों में संपर्क किया जाकर 14 जिलों में जिला सम्मेलन आयोजित किए जा रहे है जो लोकतांत्रिक तरीके से संघर्ष को आगे बढ़ाएगा। इस संघर्ष हेतु सभी राजनीति दल, NGOs, युवाओं, महिलाओ, सर्व समाज और समाज के मुखियाओ से सहयोग, सहकार और समन्वय के जरिए बाबा साहब के बताये पथ अनुसार शिक्षित बनने, संगठित भूमिका, मुख्य वक्ता एवं जनजाति सुरक्षा मंच के केंद्र सदस्य श्रीमान बंसीलाल कटारा जी ने कहा कि संघर्ष लंबा है लड़ाई सड़क से संसद की है, विविध संगठनों के कार्यकर्ता व गणमान्य उपस्थित रहें व संघर्ष को आगे बढने का आग्रह किया जिसमें 2000 सेअधिक संख्या में कार्यकर्ता उपस्थित रहे |
इस अवसर पर हररतन ड़ामोर सहसंयोजक राजस्थान जनजाति सुरक्षा मंच , विजय सिंह देवदा, धुलेश्वर, वेस्तारा, जालुसिंग गामोड़, कालुसिंह देवदा, कांतिलाल, कल्लू महाराज, महेश, पारसिंह राणा, रणवीरसिंह अमलियार, उदयसिंह अड, दशरथ डाबी, चतरसिंह भगत,आभार संयोजक बहादुरसिंह डामोर ने व्यक्त किया | संचालन डॉ जोहनसिंह देवदा ने किया | यह जानकारी जिला संयोजक बहादुरसिंह डामोर ने दी।