सत्य की आचरण के आधार पर ही हम एक दूसरे पर विश्वास करते हैं – संत पुनीत राम जी महाराज
सागवाड़ा। सत्य का महत्व तभी है जब सत्य को जीवन में मन, वचन और कर्म उसे स्वीकार किया जाए , सत्य की आचरण करने वाला व्यक्ति ही सामाजिक जीवन में प्रतिष्ठा और सम्मान को प्राप्त करता है। यह बात कान्हड़ दास धाम रामद्वारा में चतुर्मासरत रामस्नेही संप्रदाय के संत पुनीत राम जी महाराज ने श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा कि सत्य की आचरण के आधार पर ही हम एक दूसरे पर विश्वास करते हैं, परस्पर विश्वास की न्यू पर ही संपूर्ण समाज की रचना टिकी हुई है। संत ने प्रभु श्री राम का उदाहरण देते हुए कहा कि प्रभु श्री राम ने अपने जीवन में मुसीबतों का सामना करते हुए समाज के सामने ऐसा आदर्श प्रस्तुत किया जिसकी अनुसरण करने से मनुष्य का जीवन सफल हो जाता है।
संत पुनीत सिंह जी महाराज ने कहा कि किसके साथ कैसा व्यवहार हो यह प्रभु श्री राम के अलावा कोई नहीं जानता। गुरु, माता-पिता, भाई, मित्र यहां तक कि शत्रु से भी प्रभु का व्यवहार अनुकरणीय है इसीलिए कहा जाता है कि रामकथा लोक व्यवहार की आचार संहिता है। संत ने कहा कि धर्म मात्र भौतिक उपलब्धि नहीं है वह मनुष्य के स्वभाव आत्मा और मनुष्य की अनावरण से ढकी हुई है, इस कारण वह अज्ञात है। आवरण से उसका चैतन्य ढका हुआ है लेकिन वह अस्त नहीं है। संतों की कृपा चाहिए समागम मिलता है। संत ने कहा कि रामकथा के जरिए मनुष्य किया जीवन संवर जाता है वह बुरे कर्म छोड़कर नीति की राह पर चल पड़ता है।
सत्संग से जुड़ने के बाद मानव अपने साथ-साथ परिवार और समाज का भी कल्याण करने में लग जाता है। सत्संग संतो की कृपा से ही मिलता है और जब संत विशेष कृपा करता है तो समागम मिल जाता है। संत ने रामकथा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अकेले प्रार्थना करने से हो सकता है परमात्मा देर से सुने, लेकिन जब एक साथ लाखों हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हैं, तो परमात्मा को सुनना ही पड़ता है इसलिए रामकथा विशेष महत्व रखती है। कथा के दौरान संत ने कई भजन भी सुनाए।
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