आचार्य सुंदर सागर - चातुर्मास  मंगल कलश स्थापना के साथ ही 28 वां दीक्षा दिवस  श्रद्धापूर्वक मनाया

ध्वजारोहण  कर चातुर्मास का उद्घोष किया
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सागवाडा। आचार्य सुंदर सागर महाराज का सागवाड़ा में भव्य चातुर्मास  मंगल कलश स्थापना के साथ ही 28 वां दीक्षा दिवस  श्रद्धापूर्वक मनाया गया। इस अवसर पर जैन बोर्डिंग में कई विशेष कार्यक्रमों का आयोजन हुआ। नगर सहित दूरदराज से आए जैन श्रावक श्राविकाए भारी संख्या में उपस्थित रहे। सुबह  भगवान जिनेंद्र का पंचामृत से अभिषेक किया गया।  दीक्षा दिवस पर आचार्य श्री का मुनि संघ, आर्यिका माताजी, ब्रह्मचारी एवं गुरुभक्तों के द्वारा पाद प्रक्षालन किया। दोपहर में ध्वजारोहण  कर चातुर्मास का उद्घोष किया गया। आचार्य के 28 वर्ष पूर्ण होने पर दीक्षा दिवस पर गुरुदेव आचार्य श्री सुंदर सागर महाराज के श्री चरणों का पाद प्रक्षालन किया गया। चातुर्मास का प्रथम आदिनाथ कलश दिनेश खोड़निया, द्वितीय आदिसागर कलश पवन कुमार गोवड़िया, चतुर्थ आचार्य विमलसागर कलश  सागरमल जी अजबलाल जी, पंचम तपस्वीसम्राट कलश शाह राजमल जी गेबिलाल  विपिन जी ने लिया। 

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जैन धर्म आदि काल से है और अंत काल तक रहेगा- आचार्य सुंदर सागर
इससे पूर्व आज आचार्य सुंदर सागर महाराज ने  सुबह कालीन धर्म सभा में अपने मंगल प्रवचनो में कहा है कि आत्मा से परमात्मा बनने के मार्ग पर चलना सुगम और कठिन तपस्या भरा  है। लेकिन भगवान महावीर स्वामी की ध्वनि जो जिनागम शास्त्रों में उल्लेखित है उसका अनुसरण  एवं आत्मसात करते हुए आत्म कल्याण के मार्ग पर आगे बढ़ा जा सकता है। उन्होंने कहा है कि आचार्य कुंदकुंद स्वामी द्वारा रचित ग्रंथ शाश्वत जैन धर्म की ओर ले जाने का मार्ग प्रशस्त करते हैं। जैन धर्म आदि काल से है और अंत काल तक रहेगा। उन्होंने कहा कि धर्म के मर्म को समझने के लिए शास्त्रों का स्वाध्याय करना बहुत ही आवश्यक है। गुरु और शास्त्र ही जीवन को सही दिशा प्रदान करते हैं।

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आचार्य श्री का जीवन परिचय
आचार्य सुंदर सागर महाराज का जन्म   पिता राधेश्याम अग्रवाल एवं माता सावित्री देवी अग्रवाल के यहां  9 नवंबर 1976 को पहाड़ी धीरज सदर बाजार दिल्ली में हुआ। आपकी माताजी सावित्री देवी अग्रवाल दीक्षा लेकर क्षुल्लिका सुगंध मति माताजी है ।आपका ग्रहवस्था में जीवन का नाम प्रदीप कुमार जैन रहा । प्रारंभिक शिक्षा बीकॉम कंप्यूटर तक प्राप्त की और तपस्वी सम्राट जैनाचार्य सन्मति सागर महाराज के प्रथम बार दर्शन के बाद से ही आप में वैराग्य के भाव जागृत हो गए और वर्ष 1996 में फिरोजाबाद में आपने आराध्य गुरु आचार्य सन्मतिसागर महाराज से दीक्षा प्राप्त की।

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