दोवड़ा।। श्री मुनिसुव्रत नाथ दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र हथाई में चातुर्मास हेतु विराजित पट्टाचार्य 108 श्री समता सागर जी महाराज ने पर्यूषण पर्व के चौथे दिन उत्तम शौच धर्म पर प्रवचन दिया। आचार्य ने अपने प्रवचन में बताया कि जिसकी आत्मा शुद्ध नहीं है वह पाप वृत्ति में रत होता है। आत्मा को शुद्ध बनाना ही उत्तम शौच धर्म का लक्षण है । लोभ प्रवृत्ति के कारण मनुष्य भी आत्मा से अशुद्ध होता है । लालच उसे पाप में घसीटता है, वह जीव संसार के चक्कर लगाता है। आत्मा को पवित्र करने के लिए अपने जीव को अपने शरीर से व अपनी इंद्रियों से मोह का त्याग करना होता है तब जाकर जो शाश्वत सुख प्राप्त होता है उसे ही उत्तम शौच धर्म कहते हैं।
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