दोवड़ा।। श्री मुनिसुव्रत नाथ दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र हथाई में चातुर्मास हेतु विराजित आचार्य शांतिसागर जी महाराज (छाणी) परंपरा के पट्टाचार्य 108 श्री समता सागर जी महाराज ने पर्युषण पर्व के छठवें दिन उत्तम संयम धर्म पर प्रवचन देते हुए कहा कि, संयमित जीवन नहीं जिने के कारण मनुष्य में अनेक बीमारियां उत्पन्न होती है। मनुष्य को अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए पांचों इंद्रियों को वश में करना चाहिए । इससे मन में शांति मिलती है। शाकाहार जीवन से ही मनुष्य का मन प्रसन्न रहता है खाना-पीना दिन में ही होना चाहिए रात्रि में भोजन करने से मनुष्य को अनेकों प्रकार की बीमारियां उत्पन्न हो जाती है, जिससे मनुष्य का जमा धन भी खर्च होता है एवं वह अकाल मृत्यु को प्राप्त हो जाता है । उत्तम संयम धर्म में मनुष्य को धार्मिक प्रवृत्ति के साथ जीना चाहिए । रहन सहन सात्विक व नियमित होना चाहिए। उत्तम सयंम धर्म के पालन से कष्टों का निवारण होता है । संयमित जीवन से सद्गति प्राप्त होती है व बैकुंठ की प्राप्ति होती है।