सागवाडा ।। आचार्य श्री अनुभव सागर महाराज ने गुरुवार को जैन बोर्डिंग स्थित वात्सल्य सभागार में धर्म सभा को संबोधित करते हुए अपने मंगल प्रवचनओं में कहा है कि इंसानों की इच्छाएं तथा आशाओं का कभी कोई अंत नहीं होता है लेकिन संयम भरा जीवन अंधेरों में रोशनी के साथ नई ऊर्जा का संचार जरूर कर देता है और इसके लिए स्वयं पर विश्वास होना बहुत जरूरी है क्योंकि जिनको खुद पर विश्वास होता है जीत वही हासिल कर सकता है।उन्होंने कहा है कि रात जाएगी तो सुबह जरूर होगी और सुबह होगी तो भास्कर का उदय होना भी तय है ।इच्छाओं के विपरीत आत्मविश्वासी जीवन मंगल भरा होता है ।जैसे सूर्योदय होने पर खिलते हुए कमल के पुष्प में भंवरा रसास्वादन करने पहुंच जाता परन्तु उसकी इच्छाएं समाप्त नहीं होती है तब वह यह भूल जाता है कि सूर्योस्त के बाद कमल पुष्प की पंखुड़ियां बंद हो जाएगी और वह कैद हो जाएगा।कमल की पंखुड़ियों में कैद होने के बाद भी भ्रमर की सकारात्मक सोच समाप्त नहीं होती क्योंकि उसे विश्वास है कि कल फिर सूर्योदय होगा और पंखुड़िया खिल उठेगी और वह इस बंधन से मुक्त हो जाएगा ।
आत्मविश्वास हमेशा यह जरूर निश्चय कर देता है ।वास्तव मे यही जीवन की सच्चाई है और अगर जीवन का अंत है तो सरोवर में कभी भी हाथी पहुंच कर कमल के पुष्प को तोड़ भंवर के जीवन को समाप्त भी कर सकता है ।कालचक्र किसी के हाथ में नहीं है यह सब प्रभु की कृपा और आत्मविश्वास पर निर्भर करता है इसलिए सुमरण और सुमंगल जीवन के लिए सदैव प्रभु का स्मरण करना श्रेष्ठ है।धर्मसभा में आचार्य श्री ने मुनि एवं संसारी जीवन की तुलनात्मक विवेचना कर कहा कि दो हाथों से कमाने वाला गृहस्थी भोजन एक हाथ से कर पाता है जबकि दिगंबर मुनि तप ,साधना एवं स्वाध्याय के अपने जीवन में दोनों हाथों से आहार ग्रहण करते हैं ।संसारी प्राणी का जीवन इच्छाशक्ति के अधीन होता है वास्तव में सुख की लालसा में इच्छा तथा तष्णा जैसे जैसे बढ़ती है व्यक्ति अपने जीवन को ख़ुद ही दुख के गहरे कुएं में धकेल देता है जबकि जिनकी इच्छाएं मर जाती है वह जीवन को अमर कर भवसागर को पार कर जाता है।उन्होंने कहां है कि वचन सिद्धि और शब्दों का ज्ञान इंसान को नई जीवन शैली प्रदान करता है ।सौभाग्यशाली वही होते हैं जो ज्ञानअमृत से योग्य स्थान का चयन कर जाते हैं ।उन्होंने कहा कि आत्म नियंत्रण करके ही प्रबल पुरुषार्थ हासिल किया जा सकता है ।आचार्य श्री ने 26 जुलाई को होने जा रहे मंगलकलश की स्थापना को लेकर कहा कि मंगल कलश दिया दान धर्म की वैभवता को सुशोभित करने के साथ ही ज्ञानदान और अभय दान का पुण्य प्रदान करता है दरअसल मंगल कलश की स्थापना कलह को दूर कर जीवन में शांति एवं सकून के साथ सफलता का मार्ग प्रशस्त करता है।उन्होंने धर्म सभा में कहा है कि सागवाड़ा नगर हर क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान रखता है और इस पहचान को और ज्यादा सूद्रढ करने के लिए आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज छाणी की छोटी नसिया जी पर स्थित समाधि स्थल का जिर्णोद्धार हो जाए तो पूर्व आचार्यों की वंदना और उनके बताए गये मार्ग और आदर्श जीवन को अपनाने में आने वाली पीढ़ी को श्रेष्ठ विरासत मिल जाएगी ।उन्होंने कहा है कि हालांकि सागवाड़ा नगर में आचार्य श्री योगीन्द्रसागर महाराज ,आचार्य श्री सुनील सागर महाराज सहित कई जाने-माने पूर्वांचार्यो तथा संतो ने आशीष प्रदान कर उनकी प्रेरणा पाकर यहा पर दशा हुमड दिगंबर जैन समाज ने इस नगर को निसंदेह ऐतिहासिक तीर्थ स्थल बनाने में कोई कसर नहीं रखी है । उन्होंने पावापुरी जल मंदिर का जिक्र कर कहा कि आने वाले समय में निश्चित तौर पर यह नगर विश्व के मानचित्र पर अपनी विशिष्ठ पहचान को कायम कर देगा।प्रारंभ में धर्म सभा में मंगलाचरण श्रीमती प्रेरणाशाह ने प्रस्तुत किया वहीं पर समाज के श्रेष्ठजनों ने आचार्य श्री का पाद प्रक्षालन कर आशीष प्राप्त किया ।धर्म सभा के अंत में समाज ट्रष्टी एवं नगर पालिका के अध्यक्ष श्री नरेंद्र खोडनिया ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि संतों के बताए मार्ग पर चलकर आज यह नगर वागड ही नहीं अपितु देश भर में विशेष आस्था स्थल बन चुका है ।उन्होंने आचार्य शांतिसागर जी छाणी के समाधि स्थल के जीर्णोद्धार की प्रेरणा देने पर आचार्य श्री की प्रति अपनी अनुमोदना प्रकट करते हुए दिवंगत सेठ दिलीप कुमार का स्मरण कर बताया कि 25 जुलाई को प्राचीन समय से चली आ रही सेठ परंपरा का निर्वहन करते हुए समाज द्धारा नव पदारोहण कार्यक्रम यहां आयोजित किया जा रहा है जिसमें 18000 दशा हुमड समाज के सभी गांव के जैन समुदाय उपस्थित रहेगा और वंशागत परंपराओं का पालन करते हुए समाज उनके पुत्र महेश कुमार नोगनिया को सेठ की पदवी ससम्मान के साथ प्रदान करेगा।