अन्तर्मुखी की मौन साधना का 27वां दिन
मुनि पूज्य सागर की डायरी से…….
मौन साधना का 27वां दिन। आज मैं जहां हूं, वहां सिर्फ कर्म-निर्जरा की दिनचर्या है। व्यक्ति के चेहरे की मुस्कान उस वक्त चली जाती है जब उसका विरोध होना शुरू हो जाता है। जीवन में एक संकल्प जरूर करना चाहिए, यदि अपने चेहरे पर मुस्कान बनाए रखना चाहते हो तो निश्चय करना चाहिए कि अपनी तुलना किसी दूसरे से नहीं करूंगा। तुलनात्मक अध्ययन से ही व्यक्ति की अपनी सोच प्रभावित होती है। वह दूसरों के काम को देखकर अपना काम करता है, वह अपने दिमाग और अपनी सोच से कुछ नहीं कर सकता। तुलनात्मक अध्ययन ही व्यक्ति के भीतर पद और सम्मान की आकांक्षाएं पैदा करता है। जीवन का कड़वा सत्य है- जब व्यक्ति सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक पदों की दौड़ में दौड़ना शुरू कर देता है तो वह अपने जीवन में कर्तव्य और निष्ठा से काम नहीं कर सकता। उसकी सारी सोच खुद के पद को बचाने की जोड़-तोड़ करने तक सिमट कर रह जाती है।
एक और कड़वा सत्य है- यदि व्यक्ति अपना कर्तव्य, निष्ठा और ईमानदारी से करता है तो उसका भी विरोध होगा। विरोधी को तो बस एक छोटी सी कमजोरी चाहिए ताकि वह उसके पीछे पड़ा रहे और उसे परेशान करता रहे। विरोध तो कुछ नया करने वाले का भी होता है। वास्तव में वह नए कार्य का विरोध नहीं करता, वह तो विरोध इसलिए करता है कि यह नया कार्य उसने क्यों नहीं किया। यह काम वह खुद करता तो अच्छा होता। इसी सोच के चलते व्यक्ति दूसरे का विरोध करता है। पद, मान और सम्मान की इच्छा ही व्यक्ति के जीवन में विरोधियों को जन्म देती है। जिस इंसान को पद दूसरों के बल पर मिला हो, वह व्यक्ति कभी भी समता भाव से निर्णय नहीं कर सकता। पद की चाह व्यक्ति को अहंकारी बना देती है। दुनिया में यदि अभिमान से जीना है तो किसी पद के पीछे नहीं, बल्कि अपने सिद्धांतों के पीछे दौड़ना चाहिए। पद देने वाले तो खुद तुम्हारे पीछे दौड़ेंगे। विरोध से बचना है तो विरोधियों का सामना करना सीखना होगा और अपनी कमजोरी जानना है तो विरोधी को बोलने का मौका देना चाहिए। व्यक्ति की कमजोरी ही उसका व्यक्तित्व नष्ट कर देती है। कमजोरी के सहारे जीवन जीने वाला व्यक्ति कभी खुश नहीं रह सकता। वजह, व्यक्ति के भीतर की कमियां उसे हमेशा डराकर रखती हैं और भय कभी मुस्कान नहीं दे सकता। डर को दूर करने के लिए कमजोरियों को स्वीकार करना शुरू करना चाहिए।