सागवाड़ा। उपखण्ड के वांदरवेड गाँव में माही व मोरन नदी के त्रिवेणी संगम तट पर, प्राचीन नीलकंठ महादेव मंदिर में श्रावण महीने में खास महत्त्व है। श्रावण मास पर यहाँ हजारो महादेव भक्तो का ताता लगा रहता है। वही लोकेश पाटीदार व पुजारी जगदीश सेवक ने बताया कि श्रावण मास में नीलकंठ महादेव मंदिर में शिव भक्तो के द्वारा प्रतिदिन महाआरती की जाती है, इस दौरान आसपास के क्षेत्रो से भरी तादात में शिवभक्त महाआरती का लाभ ले रहे है।
पुराणिक कथाओ में उल्लेख
वांदरवेड के नीलकंठ महादेव मंदिर का उल्लेख पुराणिक कथाओ में किया गया है। जिसमे किंवदंती के अनुसार कुंवालिया के एक ब्राह्मण की गाय वन में कतेर के पौधे पर स्वतः दूध छोड़कर अभिषेक कर देती थी, ब्राम्हण जब गाय का दूध निकालता तो, गाय दूध नहीं देती थी। बाद में ब्राह्मण ने कतेर के पौधे वाली जगह को खोदकर देखा तो वहां, स्वयंभू शिवलिंग प्रकट हुआ। कहते हैं कि खोदते वक्त शिवलिंग पर चोट लगी थी, जिससे लिंग का कुछ हिस्सा टूट गया। कालांतर में उसी खंडित शिवलिंग को, मंदिर में स्थापित किया गया, जिसकी आज भी पूजा होती है। यहां महादेव के मंदिर निर्माण को लेकर भी दिलचस्प किंवदंती प्रचलित है।
शिवभक्त ब्राह्मण को स्वप्न में भगवान शिव ने दिए थे दर्शन
वांदरवेड के नीलकंठ महादेव मंदिर के पुजारी जगदीश सेवक सहित बुजुर्ग बताते हैं कि, वर्षों पूर्व वांदरवेड के एक शिवभक्त ब्राह्मण को स्वप्न में भगवान शिव ने दर्शन देते हुए बताया था कि, गांव के दक्षिण – पूर्व भाग में संगम के पास शिवलिंग पड़ा हुआ है, वहां मंदिर का निर्माण करो, भगवान ने ब्राम्हण को उसके घर मे अनाज भरने की कोठी में, धन हीरे, जवाहरात, मुद्राएं दिखाई और उसी से मंदिर बनाने का आदेश दिया। ब्राम्हण ने मंदिर बनवा दिया।
दूरदराज क्षेत्रो से आते है शिवभक्त
वांदरवेड के नीलकंठ महादेव मंदिर के चारो तरफ प्रकृति का मनोहारी व शांत वातावरण होने से, यह स्थान आध्यात्मिक केंद्र बना हुआ है। यहां पर दिन भर आस पास क्षेत्र व दूरदराज से शिव भक्तो का आना जाना रहता है और यहाँ पर मंदिर में भगवन शिव के दर्शन मात्र से भक्तो की मनोकामना पूरी होती है। यहाँ वांदरवेड ,सिलोही, वनियाप, दिवडा छोटा, दिवडा बड़ा,लिमडी ,कानपुर व बांसवाड़ा क्षेत्र के शिवभक्त दर्शन के लिए आते है। यह जानकारी प्रियेश पाटीदार ने दी।