सागवाड़ा। आचार्य तुलसी सचमुच व्यक्ति नहीं जय धर्म, दर्शन, कला, साहित्य और संस्कृति के प्रतिनिधि ऋषि पुरुष थे। उनका संवाद, साहित्य, साधना, सोच, सपने और संकल्प सभी मानवीय मूल्यों के उत्थान और उन्नयन से जुड़े हुए थे। उनका हर संवाद संदेश बन गया। जैन धर्म एवं तेरापंथ संप्रदाय से प्रतिबद्ध होने पर भी आचार्य तुलसी का दृष्टिकोण असाम्प्रदायिक रहा है। उनके माननीय संवेदनाओं ने पूरी मानवता को करुणा से भिगोया था, यह कह कर कि मैं उस दिन की आशा लिए हुए हुं जिस दिन किसी को फांसी तो क्या जेल की सजा भी नहीं मिलेगी और इसलिए वे इंसान को सही मायने में इंसान बनाने में अपना जीवन समर्पित करते रहे यह उद्गार विद्या निकेतन माध्यमिक विद्यालय भीलूडा के विवेकानंद सभागार में आयोजित आचार्य महाप्रज्ञ श्री तुलसी जयंती समारोह में विद्यालय के प्रधानाचार्य दिनेश व्यास ने बतौर मुख्य वक्ता के पद से बोलते हुए व्यक्त किए। आचार्य महाप्रज्ञ के चित्र के सम्मुख दीप प्रज्वलित करने एवं सरस्वती वंदना से प्रारंभ हुए समारोह में विद्यालय की आचार्या श्रीमती कल्पना व्यास एवं श्रीमती जी व सीमा जोशी ने भी आचार्य श्री के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ वास्तव में एक महामानव थे जिन्होंने इस कलयुग में सतयुग के लोगों में निहित भावनाओं को भरने का श्रेष्ठ कार्य किया है। कार्यक्रम में विद्यालय के भैया बहनों ने भी विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम में करुणा जोशी, लता भट्ट, संध्या पंड्या ,मोनिका सुथार, दीक्षांत सुथार सहित कई अभिभावक उपस्थित थे कार्यक्रम का संचालन चिराग मेहता ने किया एवं आभार शिव शंकर बलाई ने व्यक्त किया।