ऊंचे पद और आसन ग्रहण करने से किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा में अभिवृद्धि नहीं होती व्यक्ति का सम्मान और प्रतिष्ठा उसके आचरण तथा चरित्र पर निर्भर करता है।सद्चरित्र एवं आदर्श आचरण से ही मानव जीवन की श्रेष्ठता का आकलन किया जाता रहा और जिसका आचरण श्रेष्ठ होता वही समाज तथा देश में अपना वर्चस्व स्थापित कर सम्मान का हकदार बन जाता है ।यह उद्गार शनिवार को यहां जैन बोर्डिंग स्थित वात्सल्य सभागार में गुरु पूर्णिमा के शुभ अवसर पर आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए ज्ञानामृत चतुर्मास में विराजित प्रखर वक्ता आचार्य श्री अनुभव सागर महाराज ने अपने मंगल प्रवचनो में व्यक्त किए हैं।उन्होंने कहा है कि नीचे से ऊपर का अनुमान गलत हो सकता है वास्तविकता मे भौतिक स्वरूप और अलौकिक प्रभाव को बहुत नजदीक पहुंचने पर ही ज्ञात होती है । भ्रम तथा झुठी शान की स्थिति में अंदर से कुछ ओर तथा बाहर से कुछ और होने का नाटक और प्रदर्शन करने से जीवन के शाश्वत मूल्यों का निश्चित तौर पर पतन होता है ।सम्यक दृष्टि एवं सम्यक ज्ञान ही चरित्र एवं आचरण को शुद्धता प्रदान करता है।प्रदर्शन से अच्छा है सही मार्ग पर चलकर सच्चे दर्शन की ओर आगे कदम बढ़ाया जाए आचार्यश्री ने कहा है कि आज गुरु पूर्णिमा है। गुरू का स्मरण और उनके बताए मार्ग पर चलने का संकल्प लेने का दिन है ।गुरु ही साक्षात ब्रह्म का स्वरूप है ।गुरु का जितना गुणगान किया जाए कम है ।उन्होंने कहा कि मां जन्म देती है ,पिता जायदाद देता है , पत्नी अपनी जवानी देती है मगर गुरु सच्चे अर्थों में उत्तम मार्ग की ओर जीवन को प्रशस्त करते हैं।उन्होंने अपने दीक्षा गुरु आचार्य अभिनंदन सागर महाराज ,आचार्य विद्यासागर महाराज तथा आचार्य रणयसागर महाराज के साथ बिताए पलों का जिक्र करते हुए उनका वंदन किया और कई संस्मरण धर्मसभा में प्रस्तुत किए। उन्होंने जिनशासन के पूर्वचार्यो को भी याद किया ।उन्होंने कहा कि गुरु का सानिध्य जीवन में कभी भुलाया नहीं जा सकता ।गुरु के हर शब्द में जीवन की सच्चाई और सार्थकता दिखाई देती है ।गुरु के प्रति समर्पण के भाव से निश्चित तौर पर आत्म कल्याण का बोध करा देती है ।उन्होंने कहा कि आचार्य रणसागर महाराज का जन्म सागवाड़ा की धरा पर हुआ जिससे यह नगर पुण्यशाली होने के साथ ही अभूतपूर्व गौरव को प्राप्त कर चुका है।उन्होंने कहा कि गुरु को समझना है तो वहां जाकर बेठो जहां गुरु खुद मौजूद है ।गुरु के सानिध्य में बैठकर ही जीवन के रहस्य का ज्ञान प्राप्त कर कल्याण के मार्ग पर चलकर मानव जीवन का उद्धार हम कर सकते हैं।शिष्य तथा भक्तों के आत्मसम्मान को जीवित रखना ही गुरु का धर्म है ।आचार्य श्री के प्रवचनो से पूर्व संघस्त आर्यिका सिद्धार्थमति माताजी ने धर्मसभा को संबोधित कर गुरु की अपार महिमा का वर्णन प्रस्तुत किया ।आचार्य श्री के पाद प्रक्षालन का लाभ शाह कीर्ति भाई सर्राफ परिवार को प्राप्त हुआ वहीं पर आर्यिक एवं मुनि संघ द्वारा शास्त्र भेंट किया गया।धर्मसभा का संचालन राजेंद्र पंचोरी तथा मंगलाचरण तिलकनन्दनी शाह ने प्रस्तुत किया।
भक्तों ने किया गुरुपूजन
गुरु पूर्णिमा पर दशा हुमड दिगंबर जैन समाज द्वाराआचार्य अनुभव सागर महाराज का विधिवत गुरु पूजन किया गया तथा अष्टद्रव्यो से अर्ध्य समर्पित कर उनकी भक्ति और वंदना की गई ।प्रात : कालीन मेला में भगवान श्री जी का अभिषेक किया गया ।इस अवसर पर महिला महासभा के साथ ही समाज सेठ महेश कुमार नौगनीया, समाज ट्स्टीजन नरेंद्र खोडनिया ,गजेंद्र गोवाडिया ,महेंद्र कोठारी पवन कुमार गोवाडिया,कीर्ति भाई शाह, केसरीमल शाह ,वैभव गोवाडीया ,चातुर्मास कमेटी के अध्यक्ष अश्विनी बोबडा सहित काफी संख्या में श्रावक और श्राविकाए उपस्थित रहे।
मंगल कलश की स्थापना
रविवार को दोपहर 2 बजे ज्ञान अमृत चातुर्मास के लिए मंगल कलश की स्थापना की जाएगी ।यह जानकारी देते हुए चातुर्मास कमेटी के अध्यक्ष अश्विन बोबडा ने बताया कि कुल 7 कलश की स्थापना होगी ।कलश प्राप्त करने वाले सौभाग्यशाली परिवार का आज आचार्य श्री अनुभवसागर महाराज के ससंध सानिध्य में चयन किया जाएगा ।रविवार को ही समाज द्धारा प्राचीन सेठ परंपरा का निर्वहन करते हुए दिवंगत सेठ दिलीप कुमार के पुत्र महेश कुमार नोगनिया को समाज की ओर से सेठ की पदवी सम्मानपूर्वक प्रदान की जाएगी । इस अवसर पर भारतवर्षीय 18हजार दशा हुमड दिगम्बर जैन समाज के अध्यक्ष दिनेश खोडनिया सहित सभी 72 गाँवो का जैन समुदाय उपस्थित रहेगा ।