‘बाल – दिवस’ पर श्रद्धा / चिराग भट्ट की स्वरचित कविता

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‘बाल – दिवस’

मन प्रसन्न हो जाता है
चहचहाते बच्चों का जब
ये दिवस आता है
मासूम बचपन में ये दिल रम जाता है
निश्छल मुस्कान में जब
ईश्वर नज़र आता है

प्यारी – प्यारी दुनिया इनकी
कितनी निश्छल मृदु मुस्कान
टेक्नोलॉजी के भँवर में मगर
भूल चुके ये भारत का गुणगान

इन्हें भी बताओ किस मुल्य पर
आज़ादी हमने पाई है
कितने वीरों ने आत्मबलिदान से
इसकी किमत चुकाई है

दूसरी ओर एक ऐसा भी है बचपन
कोई नहीं जिनके लिए परेशान
फटेहाल, भूखे जो दर-दर भटकते
क्या ये है मानवता की पहचान

पढ़ने की उम्र में इन्हें पढाओं
ज़िन्दगी से परिचय करवाओ
बचपन हो किसी का भी
प्रेम भरे नेह से इन्हें सिंचते जाओं

स्वरचित कविता : श्रद्धा चिराग भट्ट 

Shraddhabhatt331@gmail.com

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