भारत के संविधान की रचना : 9 दिसंबर 1946 - 26 जनवरी 1950
भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 को अपनाया गया था। 299 सदस्यीय संविधान सभा ने तीन वर्षों में भारत के संविधान को तैयार किया।
आचार्य जी. भ. कृपलानी ने संविधान सभा की उद्घाटन सत्र के सबसे ज्येष्ठ सदस्य डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा का परिचय देकर किया। डॉक्टर सिन्हा का नाम अध्यक्ष के तौर पर प्रस्तावित किया गया था। उद्घाटन सत्र में डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा को संविधान सभा का अध्यक्ष नामित किया गया।
संविधान सभा का पहला सत्र 11 दिसंबर 1946 को आयोजित किया गया, जहां डॉ. राजेंद्र प्रसाद को सर्वसहमति से इस सभा का अध्यक्ष चुना गया।
संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 को हुई। इसमें कुल 205 सदस्य थे जिनमें नौ महिलाएं भी शामिल थीं. सभा की अध्यक्षता डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा कर रहे थे।
चित्रित: जवाहर लाल नेहरू 10 दिसंबर 1946 को संविधान सभा में भाषण देते हुए।
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, संविधान सभा के सदस्य (1946-1949), ने सभा के प्रथम सत्र (दिसंबर 1946) में भाषण दिया: ‘’किसी भी संविधान के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने नागरिकों को उनके मूल अधिकारों का अनुभव कराए। नागरिकों को यह अनुभव होना चाहिए कि उन्हें संविधान से बुनियादी विशेषाधिकार - शैक्षिक, सामाजिक और आर्थिक - मिले हैं। साथ ही, उन्हें महसूस होना चाहिए कि उनके सांस्कृतिक अधिकार भी सुरक्षित हैं। नागरिकों को यह भी विश्वास होना चाहिए कि उनके अधिकारों को कोई छीन नहीं सकता।" "...यह सच्चे अर्थों में एक लोकतांत्रिक संविधान होगा। यहां हम राजनैतिक स्वतंत्रता से आर्थिक स्वतंत्रता और समानता के लक्ष्यों की ओर बढ़ेंगे। हर नागरिक को इस महान देश का हिस्सा होने पर गर्व हो। इसके अलावा, एक राष्ट्र सिर्फ़ जातीय पहचान, भावना या विरासत में मिली यादों पर निर्भर नहीं होता है। यह एक सतत और निरंतर चलती रहने वाली ज़िदगियों पर भी निर्भर है और हम अब वहां पहुंच गए हैं।"
डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने संविधान सभा (1946-1949) के स्थायी अध्यक्ष चुने जाने पर एक भाषण में कहा: ‘’यह सच है कि इस संविधान सभा के पास वह शक्ति है कि इसकी शुरुआत से ही इससे जुड़ी सीमाओं को खत्म कर दे या उन्हें बदल दे। देवियों और सज्जनों, मुझे आशा है कि आप सब जो संविधान बनाने के लिए यहां आए हैं, वह ऐसा कर सकते हैं। एक आत्मनिर्भर और स्वतंत्र भारत..." "...इन सीमाओं को खत्म कर सकता है और दुनिया के सामने एक आदर्श संविधान रखेगा। हमारा संविधान इस बड़े देश में रहने वाले सभी वर्गों, समुदायों और धर्मों के लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरेगा। साथ ही, सबके विचारों, विश्वास, और पूजा की भी स्वतंत्रता की रक्षा करेगा। हमारा संविधान सबको अपना सर्वश्रेष्ठ स्तर पाने के लिए अवसरों और हर तरह से स्वतंत्रता की गारंटी देगा।”
सरोजिनी नायडू संविधान सभा (1946-1949) की महिला सदस्यों में से एक थीं और उन्होनें संविधान सभा के पहले सत्र में एक भाषण में कहा: ‘’मुझे उम्मीद है कि आदिवासी वर्ग जो खुद को इस धरती का मूल निवासी कहते हैं, वे यह जानते हैं कि उनके साथ इस संविधान सभा में धर्म, जाति, पुरातन या आधुनिक जैसे आधार पर किसी भी तरह का कोई भेदभाव नहीं होगा..." "मुझे उम्मीद है कि इस देश में अल्पसंख्यकों का भी सबसे छोटा समुदाय, भले ही उनका राजनैतिक तौर पर प्रतिनिधित्व होगा या मुझे नहीं पता कि और किस तरीके से उनका प्रतिनिधित्व हो सकता है - मुझे आशा है कि वे महसूस करेंगे कि उनके पास अपने हितों की रक्षा के लिए एक ज्वलंत, सतर्क, और प्यार करने वाला संरक्षक है। संविधान के तौर पर ऐसा संरक्षक है जो सबके लिए समान है। किसी भी शख्स को अगर वह ज़्यादा अधिकार संपन्न है, तो भी यह अधिकार नहीं है कि इस देश में हर नागरिक को जन्म के साथ मिलने वाले समानता और समान अवसरों के अधिकारों पर हमला करे या उन्हें कम कर सके।"
संविधान सभा के सामने प्रस्तावित उद्देश्यों को रखने के दौरान जवाहरलाल नेहरू का भाषण:
‘’हम एक नए युग की दहलीज़ पर हैं। हमारे इरादे क्या हैं और हम क्या करने जा रहे हैं, यह इस प्रस्ताव से साफ़ पता चलता है। यह करोड़ों भारतीयों के साथ हमारा एक खास अनुबंध है और सामान्य तरीके से कहें, तो पूरी दुनिया के लिए भी। यह हमारे लिए एक शपथ की तरह है जिसे हमें पूरा करना है… हमारा संकल्प दो धुरियों के बीच एक कड़ी की तरह है (जो बहुत ज़्यादा कहा गया है और जिसके बारे में बहुत कम कहा गया)। यह कुछ सिद्धांतों पर टिका हुआ है। मैं यह भी मानता हूं कि भारत में किसी समूह, दल, और किसी नागरिक को यह मानने में मुश्किल होगी। हम सब अपने-अपने क्षेत्रों में एक समूह या किसी दल से जुड़े लोग हैं और शायद हम अपनी-अपनी दलों में काम करना जारी भी रखेंगे। इसके बावजूद, ऐसा समय भी आता है जब हमें दलों से ऊपर उठकर राष्ट्र के बारे में सोचना पड़ता है। कभी-कभी उस दुनिया के बारे में भी सोचना पड़ता है जिसका हिस्सा हमारा महान देश भी है।’’
हंसा मेहता, संविधान सभा (1946-1949) की महिला सदस्यों में से एक, ने उद्देश्यों के संकल्प प्रस्ताव पर भाषण में कहा: - ‘’बहुत सी महिलाओं का दिल यह सुनकर खुशी से भर जाएगा कि स्वतंत्र भारत का मतलब सिर्फ़ हर स्तर पर समानता तक ही नहीं है। इसका मतलब है अवसरों की भी समानता।"
विजयलक्ष्मी पंडित, संविधान सभा की महिला सदस्यों में से एक ने संविधान सभा के दूसरे सत्र में उद्देश्यों के संकल्प प्रस्ताव पर भाषण में कहा: - ’मैं स्वतंत्रता की ओर बढ़ते हमारे कदमों की दिशा में, इसे मील का पत्थर मानती हूं। हालांकि, मेरी समझ में आज भी आज़ादी हमसे कुछ कदम दूर है। साम्राज्यवाद मुश्किल से मरता है: हां, यह सच है कि उसे भी पता है कि उसके दिन गिने-चुने हैं. इसके बावजूद, यह अस्तित्व के लिए संघर्ष करता ही है।"
चित्रित: च. राजगोपालचारी और जवाहरलाल नेहरू।
डॉ. भी. रा. अंबेडकर, संविधान सभा की प्रारूप समिति (1946-1949) के अध्यक्ष , ने संविधान सभा में भाषण में कहा: - "संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर, 1946 को हुई थी। अगर पीछे मुड़कर देखें, तो अब दो साल, ग्यारह महीने, और सत्रह दिन हो चुके हैं।" "...इस दौरान संविधान सभा ने कुल मिलाकर ११ सत्र आयोजित किए हैं। शुरुआती छह सत्र में उद्येश्यों के संकल्प को पारित किया गया। साथ ही, मौलिक अधिकार, केंद्रीय शक्तियां, प्रांतों की शक्तियां, अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जाति, और अनुसूचित जनजातियों पर समितियों की रिपोर्ट पर चर्चा हुई।" "...सातवें, आठवें, नौवें, दसवें, और ग्यारहवें सत्रों में संविधान के ढाँचे और प्रारूप पर विचार किया गया। संविधान सभा के 11 सत्रों में कुल 165 दिन लगे। इनमें से 114 दिनों में संविधान का प्रारूप बनाने पर विचार किया गया।’’
चित्रित: संविधान सभा की कार्यवाही के दौरान डॉ. भी. रा. अम्बेडकर प्रतिनिधि का पद लेते हुए - दिसंबर 1946 - नवंबर 1949।
चित्रित: डॉ. राजेंद्र प्रसाद, संविधान सभा के सदस्यों के साथ।
चित्रित: राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के साथ केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्य। ( बाएं से बैठे हुए: डॉ. बी. आर. अंबेडकर, रफ़ी अहमद किदवई, बलदेव सिंह, अबुल कलाम आज़ाद, जवाहरलाल नेहरू, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, सरदार वल्लभभाई पटेल, जॉन मथाई, जगजीवन राम, राजकुमारी अमृत कौर और श्यामा प्रसाद मुखर्जी )। ( बाएं से खड़े: खुर्शीद लाल, र.रा. दिवाकर, मोहनलाल सक्सेना, न. गोपालस्वामी आयंगर, न. वि. गाडगिल, जयरामदास दौलतराम, क. संथानम, सच्चिदानंदा सिन्हा और बा. वि. केसकर )।
चित्रित: सुचेता कृपलानी, संविधान सभा की महिला सदस्यों में से एक।
भारतीय संविधान की प्रस्तावना
भाग III मौलिक अधिकार, भारत का संविधान: प्रथम पृष्ठ।
संविधान सभा के सदस्यों के हस्ताक्षर, 24 जनवरी 1949: प्रथम पृष्ठ।
24 जनवरी 1950 को भारत के संविधान पर हस्ताक्षर करते डॉ. राजेंद्र प्रसाद।
24 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान पर हस्ताक्षर करने के बाद जवाहरलाल नेहरू से हाथ मिलाते हुए डॉ. राजेंद्र प्रसाद।
24 जनवरी 1950 को भारत के संविधान पर हस्ताक्षर करते हुए जवाहरलाल नेहरू।
24 जनवरी 1950 को भारत के संविधान पर हस्ताक्षर करते हुए पट्टाभी सीतारमैया।
भारत के संविधान पर हस्ताक्षर करते हुए संविधान सभा के सदस्य, 24 जनवरी 1950: द्वितीय पृष्ठ।
भारत के संविधान पर हस्ताक्षर करते हुए: जगजीवन राम (बाएं से चौथे), सरदार वल्लभभाई पटेल (बाएं से पांचवें), राजकुमारी अमृत कौर (दाएं से दूसरी) और अन्य सदस्य।
24 जनवरी 1950 को भारत के संविधान पर संविधान सभा के सदस्यों के हस्ताक्षर करने के दौरान, सरदार वल्लभभाई पटेल भाषण देते हुए।
स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री के तौर पर शपथ लेते हुए डॉ. भी. रा. आंबेडकर - 31 जनवरी 1950।
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी 24 जनवरी 1950 को भारत के संविधान पर हस्ताक्षर करने के बाद डॉ. राजेंद्र प्रसाद से हाथ मिलाते हुए।
राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद 14 अगस्त 1947 को संविधान सभा के मध्य रात्रि सत्र के दौरान, बाबू जगजीवन राम से हाथ मिलाते हुए।
च. राजगोपालाचारी के 21 जून 1948 को भारत के गवर्नर जनरल के तौर पर शपथ ग्रहण समारोह में, बाबू जगजीवन राम, राजकुमारी अमृत कौर, जवाहरलाल नेहरू, और अन्य लोग।
संविधान सभा (1946-1949) सत्र के दौरान डॉ. राजेंद्र प्रसाद, डॉ. स. राधाकृष्णन और जवाहरलाल नेहरू।
आभार: कहानी
कल्पना: प्रोफ़ेसर महेश रंगराजन, निदेशक, नेहरू स्मारक संग्रहालय एवं पुस्तकालय, पर्यवेक्षण: डॉ. एन. बालाकृष्णन, उप निदेशक, नेहरू स्मारक संग्रहालय एवं पुस्तकालय, सलाहकार: दीपा भटनागर, शोध और प्रकाशन विभाग प्रमुख, नेहरू स्मारक संग्रहालय एवं पुस्तकालय, संग्रहाध्यक्ष: ए. सेल्वम, शोध अधिकारी, मौखिक इतिहास विभाग, नेहरू स्मारक संग्रहालय एवं पुस्तकालय
क्रेडिट: सभी मीडिया
कुछ मामलों में ऐसा हो सकता है कि पेश की गई कहानी किसी स्वतंत्र तीसरे पक्ष ने बनाई हो और वह नीचे दिए गए उन संस्थानों की सोच से मेल न खाती हो, जिन्होंने यह सामग्री आप तक पहुंचाई है.
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