संसार में सर्वगुण संपन्न एवं श्रेष्ठ मनुष्य कोई नहीं होता -आचार्य अनुभव सागर महाराज

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सागवाड़ा ।।  ज्ञानामृत वर्षायोग में यहां विराजित दिगंबर जैन आचार्य अनुभव सागर महाराज ने बुधवार को जैन बोर्डिंग स्थित वात्सल्य सभागार में धर्मसभा को संबोधित करते हुए अपने मंगल प्रवचनो मे कहा है कि मनुष्य के कर्म तथा शब्द व्यवहार से ही उसके आचरण का निर्धारण होता है।संसार में सर्वगुण संपन्न एवं श्रेष्ठ मनुष्य कोई नहीं होता है ।हर किसी में गुण तथा अवगुण निश्चित तौर पर मौजूद रहते हैं फिर भी धर्म तथा भक्ति के मार्ग पर चलकर व्यक्ति अपने जीवन की राह को सुगम जरूर बना सकता है।उन्होंने कहा अंहकार रहित होना संभव तो नहीं है परंतु सम्यक दृष्टि तथा सम्यक ज्ञान से मनुष्य उत्तम भव तथा भावो की सार्थकता को प्राप्त कर सकता है।  हालांकि समय परिवर्तनशील है कौन कब क्या बन जाए कहा नहीं जा सकता लेकिन जब कोई व्यक्ति ऊंचे पद पर पहुंचकर अंहकार रहित अपने वास्तविक गुणों के स्वरूप को यथावत रखता हो फिर भी उसके प्रति लोगों की सोच और धारणा जरूर बदल जाती है।उन्होंने कहा है कि सब कुछ बेहतर से बेहतरीन होने के बाद भी हर किसी में कोई न कोई कमी जरूर होती है ।यदि शरीर स्वस्थ और सुंदर हो लेकिन किसी एक अंग मे पड़े गये घाव मे आते मवाद की बदबू से कभी कभी अपने भी अपनों से दूर हो जाते हैं।सच्चाई यही है कि मंगल और अमंगल होना पूर्व जन्म के भव तथा कर्म को भी रेखांकित करता है इसलिए उन्होंने सभी को सद्कर्मों की और आगे बढ़ने की प्रेरणा दी ।

धर्मसभा से पूर्व आचार्य को जिनवाणी भेट एवं पाद प्रक्षालन का लाभ श्रीमती दमयन्ती देवी चन्द्रशेखर सिंघवी परिवार ने प्राप्त किया तथा मंगलाचरण सुरुचि जैन ने प्रस्तुत किया ।

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