भीलवाड़ा में आचार्य महाश्रमण जी के चातुर्मास प्रवास के दौरान सरसंघचालक मोहन भागवत ने की भेट | मोहन भागवत ने धर्म सभा को किया संबोधित
“कुछ संस्कार जन्म से प्राप्त होते हैं कुछ संस्कार सत्संग से प्राप्त होते हैं: सरसंघचालक मोहन भागवत”
“सनातन धर्म में हम सब एक दूसरे के दुश्मन नहीं हैं, हमारा सब का नाता आपस में भाई का : सरसंघचालक मोहनराव भागवत
भीलवाड़ा। आचार्य महाश्रमण जी ने भीलवाड़ा के तेरापंथ नगर, आदित्य विहार में चातुर्मास प्रवास के दौरान धर्म सभा में सरसंघचालक ने कहा कि गुरु का सानिध्य व आशीर्वाद पाकर शिष्य गुरु से दो कदम आगे बना रह सकता है इसका प्रयास गुरु द्वारा किया जाता है। आचार्य श्री का कार्यक्षेत्र आध्यात्मिक है जो कि सभी बातों का आधार है। हमारा कार्य क्षेत्र मुख्यतः भौतिक संसार है। संसार में एक दूसरे के साथ आत्मीयता महत्वपूर्ण है। एक दूसरे की सहायता करते हुए आगे बढ़ना यह कार्य है धर्म का सनातन धर्म में हम सब एक दूसरे के दुश्मन नहीं है हमारा सब का नाता आपस में भाई का है। जो मेरे लिए अच्छा है वह दूसरों के लिए भी अच्छा है जो मुझे अच्छा नहीं लग रहा वह दूसरों को भी अच्छा नहीं लगेगा इससे मन में करुणा उत्पन्न होती।
सत्य अहिंसा अस्तेय का विचार है हमारे यहां सर्वत्र हैं। मन को अगर हमने सही दिशा में लगाया तो वह पूर्ण शक्ति के साथ वाणी विचार और दर्शन में प्रकट होगा कुछ संस्कार जन्म से प्राप्त होते हैं कुछ संस्कार सत्संग से प्राप्त होता है। गुरु अथवा किसी को अगर कुछ परिवर्तन करवाना है तो उसको उसी प्रकार बन करके इस समाज जीवन में रहना पड़ता है जैसा वह अन्य व्यक्तियों से करवाना चाहता है। गुरु को अपने शिष्यों से दो कदम आगे रहकर उन सब सद्गुणों में अपने को एक आदर्श रूप में प्रस्तुत करना होता है।शिष्य को भी लगे की गुरु के सानिध्य में मैं खड़ा हूं तो मेरे सिर पर उनका हाथ है मैं पहले से कुछ ऊंचा उठ रहा हूं। अपने कारण दूसरों को कष्ट नहीं हो यही आचार है। यह आचार बनता कैसे हैं अपने जीवन में छोटे-छोटे आचरणों में ही आचार बनता है। उत्तम आचार के लिए अपनी छोटी-छोटी बातों को आदतों में लाना इसे सरलता से अपने जीवन में उतारना अगर यह प्रारंभ हुआ तो आचरण में आचार आ जाएगा वह व्यक्ति सतपथ पर जाने अनजाने में भी बढ़ता रहता है। माता की अगर पुत्र से ममता है तो पुत्र हमेशा माता से जुड़ा रहता है।
आज दुनिया में पहली समस्या है संस्कारों की। इसके लिए मैं कितना मजबूत हूं किस दुनिया में चलने वाले सभी प्रपंच मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते इसके लिए स्वयं को मजबूत होना पड़ेगा । बच्चों को जो सही है वह बताना पड़ेगा अच्छा सुनना अच्छा देखना अच्छा पहनना यही संस्कारों की सीढ़ी है। मेरा परिवार आचरण का केंद्र बने। कार्यक्रम के अंत में भीलवाड़ा के तेरापंथ समाज द्वारा परम पूजनीय सरसंघचालक जी का व उनके साथ पधारे सभी प्रमुख संघ के पदाधिकारियों का सम्मान स्मृति चिन्ह देकर किया।