वचनों में सत्य और हृदय में सत्ता के अस्तित्व, पर्याय की नश्वरता का अहसास स्वरूप की और ले जाने का सशक्त माध्यम बनता है- आचार्यश्री अनुभवसागर जी महाराज

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सागवाड़ा।  आचार्यश्री अनुभवसागर जी महाराज ने अपने बताया कि विज्ञान का सहारा लेकर वैज्ञानिक, अन्वेषक, चिन्तक और विचारक नित्य ही नयी-नयी खोजों को प्रस्तुत करने में लगे है। उनका पुरुषार्थ अवश्य ही प्रशंसनीय है। परंतु जब हम गहराई से चिन्तन और परख करते हैं तो पता चलता है कि ये तो वर्षों से ऋषि-मुनियों के अनुभवों के निचोड़ रूप शास्त्रों की ही परछाइयां है, तब अहसास होता है कि विज्ञान एक अपूर्ण धर्म है, और धर्म एक परिपूर्ण विज्ञान बहुत ही मार्मिक विषय है उत्तम सत्य धर्म चूंकि सत्य को भाषा और वचनों से ही जोड़ कर देखा जा रहा है, जबकि वह साधन रूप व्यावहारिक सत्य मात्र है। वास्तविक सत्य तो पदार्थ की सत्ता की पहचान है।

एक वृद्धा के पुत्र का दुर्घटना में देहावसान होने पर वह संत के समीप पहुंचकर उलाहना देने लगी की आपने आशीर्वाद दिया था आप ही इसे पुनर्जीवित कीजिये तब संत उसे किसी भी घर से एक कटोरी सरसों लाने कहते हैं परंतु लाना उस घर है जिसमें पिछले पचास सालों में किसी का मरण ना हुआ हो दौड़ी भागी वृद्धा पुत्र मोह में हर द्वार खटखटाती है परंतु सरसों तो मिलती है पर साथ ही यह जवाब भी कि हमारे यहाँ मरण भी हुआ है किसी के वृद्ध पिता का किसी के नवयुवक पुत्र का किसी की नवविवाहिता पत्नी का तो किसी के जन्मजात बालक का खटखटाते खटखटाते उसे ध्यान ही नहीं रहता जब वह स्वयं के द्वार पर पहुँचती है, जब उसे सत्य का अहसास होता है, कि जो आया है वह जायेगा और सत्य का यही आभास उसे शांत कर देता है जैनागम के महत्वपूर्ण सिद्धांत को विज्ञान ने उर्जा विनिमय के सिद्धान्त के रूप में प्रस्तुत किया है पदार्थ ना बनाये जाते हैं ना मिट सकते है किंतु वे एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित मात्र होते हैं। द्रव्य के अस्तित्व का नहीं सिद्धान्त सुख की रीढ़ है जैसे लहर उठती-मिटती है समुद्र नहीं ऐसे ही रूप यानि पर्याय बनती मिटती है, द्रव्य यानि स्वरूप नहीं।
सत्य वचन सत्य
भाषा उसी द्रव्य के स्वरूप तक पहुँचने की व्यावहारिक प्रक्रिया है वचनों में सत्य और हृदय में सत्ता के अस्तित्व, पर्याय की नश्वरता का अहसास स्वरूप की और ले जाने का सशक्त माध्यम बनता है। गुरुदेव इस त्रैकालिक सत्य को बहुत ही सुंदर शब्दों में व्याख्या करते थे, की आना जाना लगा हुआ है आना-जन्म-जाना मरण लगा हुआ है।

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